Your Menstrual Guide

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What Is Menstrual Cycle

मासिक धर्म चक्र क्या होता है

Menstrual Cycle

मासिक धर्म को माहवारी, रजोधर्म, मेंस्ट्रुअल साइकिल या एमसी और पीरियड्स के नाम से भी जाना जाता है। महिलाओं के शरीर में हार्मोन में होने वाले बदलाव की वजह से गर्भाशय से स्क्त और अंदरूनी हिस्से से होने वाली स्त्राव को मासिक धर्म कहते हैं। मासिक धर्म सबको एक ही उम्र में नहीं होता। लड़कियों को यह 8 से 17 वर्ष तक ही उम्र में हो सकता हैं। कुछ विकसित देशों में लड़कियों को 12 या 13 साल की उम्र में पहला मासिक-धर्म होता है। वैसे सामान्य तौर पर 11 से 13 वर्ष की उम्र में लड़कियों का मासिक धर्म शुरू हो जाता है।

मेन्स्ट्रूअल साइकल, महीना, मासिक धर्म, पीरियड्स... यह लड़कियों में होने वाली सामान्य शारीरिक प्रक्रिया है। यह उतनी ही कुदरती है, जितना कि नाक का बहना। जन्म के वक्त से ही किसी भी लड़की की ओवरी या अंडाशय में पहले से लाखों अपरिपक्व अंडे मौजूद होते हैं। 12 से 15 साल की उम्र होते-होते ओवरी में से अंडे महीने में एक बार विकसित होने शुरू हो जाते हैं। इसके लिए ऐस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन नाम के हॉर्मोन जिम्मेदार होते हैं। इस उम्र में लड़कियों के शरीर में कई बदलाव भी आते हैं, जैसे ब्रेस्ट और हिप्स का साइज बढ़ना। यह बेहद सहज प्रक्रिया है वैसे ही, जैसे कि छोटे बच्चे के दांत निकलना या उसका पहली बार चलना।

लड़की को किस उम्र में मासिक धर्म शुरू होगा,

 यह कई बातों पर निर्भर करता है। लड़की के जीन्स की रचना, खान-पान, काम करने का तरीका, वह जिस जगह पर रहती है, उस स्थान की ऊंचाई कितनी है आदि। पीरियड्स या मासिक धर्म महीने में एक बार आता है। यह चक्र सामान्य तौर पर 28 से 35 दिनों का होता है। महिला जब तक गर्भवती न हो जाए यह प्रक्रिया हर महीने होती है। मतलब 28 से 35 दिनों के बीच नियमित तौर पर मासिक धर्म या माहवारी होती है। कुछ लड़कियों या महिलाओं को माहवारी 3 से 5 दिनों तक रहती है, तो कुछ को 2 से 7 दिनों तक।

मासिक धर्म शुरू कैसे होता है

जब कोई लड़की किशोरावस्था में पहुंचती है तब उसके अंडाशय इस्ट्रोजन एवं प्रोजेस्ट्रोन नामक हार्मोन उत्पन्न करने लगते हैं। इन हार्मोन की वजह से हर महीने में एक बार गर्भाशय की परत मोटी होने लगती है। कुछ अन्य हार्मोन अंडाशय को एक अनिषेचित डिम्ब उत्पन्न एवं उत्सर्जित करने का संकेत देते हैं। सामान्यतः अगर लड़की माहवारी के आसपास यौन संबंध नहीं बनाती हैं तो गर्भाशय की वह परत जो मोटी होकर गर्भावस्था के लिए तैयार हो रही थी, टूटकर रक्तस्राव के रूप में बाहर निकल जाती है। इसे मासिक धर्म कहते हैं।

पीरियड्स में पर्सनल हाइजीन से बीमारियों को रखें दूर

पीरियड्स के दौरान पर्सनल हाइजीन रखने से कई बीमारियों से बचा जा सकता है। अगर उचित साफ-सफाई न रखी जाए तो इंफेक्शन का खतरा हो सकता है। पीरियड्स में अगर पर्सनल हाइजीन का ध्यान न रखा जाए तो इससे बुखार, अनियमित पीरियड्स, खून ज्यादा आने के साथ ही गर्भधारण में भी दिक्कतें हो सकती हैं।

पीरियड्स के दौरान इन बातों का रखें पूरा ख्याल

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 सही सैनेटरी पैड का चुनाव करना बहुत जरूरी है. सैनेटरी पैड ऐसा होना चाहिए, जो फ्लो को जल्दी और आसानी से सोख ले.
अगर आप दिनभर में सिर्फ एक ही सैनेटरी पैड यूज करती हैं तो अपनी इस आदत को फौरन बदल दें. विशेषज्ञों की मानें तो हर 6 घंटे पर सैनेटरी पैड चेंज कर लेना चाहिए. वरना इससे इंफेक्शन हो सकता है.
अगर आप दिनभर में सिर्फ एक ही सैनेटरी पैड यूज करती हैं तो अपनी इस आदत को फौरन बदल दें. विशेषज्ञों की मानें तो हर 6 घंटे पर सैनेटरी पैड चेंज कर लेना चाहिए. वरना इससे इंफेक्शन हो सकता है.

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कई गांवों व छोटे शहरों में आज भी महिलाएं पीरियड्स में कपड़े का इस्तेमाल करती हैं। जिसे धोकर और छुपाकर सुखाने के चक्कर में खुली हवा व धूप तक नहीं लगने देती हैं, साथ ही बार-बार इसी का इस्तेमाल करती रहती हैं, जो कि गंभीर इंफेक्शन को न्योता देता है।
जैसा कि बताया जा चुका है गीले पैड को लंबे समय तक इस्तेमाल से आपकी जांघों व गु्प्त अंगों पर लाल चकत्ते पड़ सकते हैं और उस हिस्से पर जलन भी हो सकती है, इससे बचाव भी पैड समय-समय पर बदलते रहने से हो जाएगा।

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पीरियड्स के दिनों में अपने बैग में हमेशा एक्स्ट्रा सेनेटरी नैपकिन, टिशू पेपर, हैंड सेनेटाइजर, एंटीसेप्टिक दवा रखें, क्‍योंकि किसी भी वक्त इनकी जरुरत पड़ सकती है।

79 प्रतिशत के करीब ग्रामीण क्षेत्र में महिलाओं को होने वाली बीमारियाँ मासिक धर्म में स्वच्छता न अपनाए जाने की वजह से होती हैं, तो वहीं शहरी क्षेत्रों में रहने वाली महिलाएँ स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियाँ जानती तो हैं मगर इसके प्रति जाँच के मामले में गम्भीर नहीं हैं 

एक आंकड़े के अनुसार आज भी 50 प्रतिशत से ज्यादा किशोरियां मासिक धर्म के कारण स्कूल नहीं जाती हैं, महिलाओं को आज भी इस मुद्दे पर बात करने में झिझक होती है जबकि आधे से ज्यादा को तो ये लगता है कि मासिक धर्म कोई अपराध है।

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रैशेज कोई गंभीर समस्‍या नहीं है, यह साफ-सफाई न करने के कारण होने वाली समस्‍या है, इसलिए न केवल पीरियड के समय बल्कि सामान्‍य दिनों में भी सफाई पर विशेष ध्‍यान दें।
रैशेज की समस्‍या को दूर करने के लिए आप एंटीसेप्टिक का प्रयोग कर सकती हैं। आजकल बाजार में कई प्रकार की एंटीसेप्टिक क्रीम आती हैं। इनको लगाने से पीरियड्स के दौरान रैशेज से बचाव किया जा सकता है। जब भी पैड बदलें तो इन क्रीम का प्रयोग करें। लेकिन इन क्रीम का प्रयोग करने से पहले चिकित्‍सक से सलाह जरूर लें।

पीरियड्स के दिनों में जब भी आप सैनेटरी पैड को बदलें तो जननांगों की सफाई के बाद पाउडर लगा लें। इससे जननांग सूख जायेंगे और रैशेज की संभावना भी कम हो जायेगी। अगर आपको अक्‍सर रैशेज की शिकायत होती है तो एंटीसेप्टिक पाउडर का प्रयोग करें।

पीरियड्स के दौरान कैसा हो आहार

पीरियड की समस्याओं से बचने के लिए आहार का खास खयाल रखना चाहिए। इस दौरान ऐसे आहार का सेवन करें जो आपके ऊर्जा के स्तर को बनाए रखें और आपको थकान का जरा भी एहसास ना हो।

ब्राउन राइस और आयरन से भरपूर आहार

पीरियड्स के दौरान जब महिलाएं सुस्ती और थकान महसूस करती हैं तो उन्हें ब्राउन राइस का सेवन करना चाहिए। इसमें मौजूद शुगर और कार्बाहाइड्रेट्स आपके ऊर्जा के स्तर को बढ़ाता है। इसके अलावा कार्बाहाइड्रेट के विभिन्न स्रोत जैसे ओटमील, स्वीट पौटेटो और व्हीट पास्ता भी ले सकती हैं।
मासिक धर्म के दौरान आयरन से भरपूर आहार का सेवन करना चाहिए। आयरन से भरपूर भोजन से आप खून की कमी को दूर करने के साथ-साथ हिमोग्लोबिन की मात्रा को भी बढ़ा सकेंगी। साथ ही यह आपको कमजोर होने और तनाव में आने से भी रोकेगा। पर्याप्त मात्रा में आयरन पाने के लिए आप रेड मीट, पोल्ट्री, मीट, ड्रायड बीन, शीरा और हरी पत्तेदार सब्जियों का सहारा ले सकती हैं।

फल और सब्जियों का सेवन

अपने मासिक धर्म आहार में फल, सब्जी और होल फूड जैसे काम्प्लेक्स कार्बोहाइड्रेट को शामिल करें। साथ ही आप गाजर, खुबानी, संतरा आदि को भी अपने आहार में शामिल कर सकती हैं। पीरियड के दौरान मीठा खाने की काफी इच्छा होती है।

विटामिन वाले भोजन

अपने मासिक धर्म के आहार में विटामिन को शामिल करना बहुत जरूरी है। विटामिन ई आपको पीएमएस सिंड्रोम से छुटकारा दिलाने में मदद करेगा। विटामिन ई के लिए आप एवाकाडो और अंडे की जर्दी खा सकती हैं। वहीं विटामिन बी6 ब्लाउटिंग को कम करने में मदद करता है। विटामिन सी प्रजनन तंत्र को बेहतर बनाता है। विटामिन सी के लिए आप अंगूर और नींबू का सेवन कर सकती हैं। वहीं विटामिन बी6 के लिए अपने आहार में आलू को सम्मलित करें। 

आवश्यक फैटी एसिड

पीरियड के दौरान पेट में क्रैंप की शिकायत होती है। इन क्रैंप से बचने के लिए आपका आहार ऐसा होना चाहिए जिससे आपको जरूरी फैटी एसिड मिलता हो। पीरियड के दौरान हार्मोन में होने वाले बदलाव को आप फैटी एसिड से प्रचुर आहार से पूरा कर सकते हैं। आवश्यक फैटी एसिड के लिए आप लौकी और सूरजमुखी के बीज का सेवन कर सकती हैं। इनमें लियोलेनिक एसिड पाया जाता है जो गर्भाशय के मसल्स को ढीला करता है, जिससे क्रैंप से राहत मिलता है।